क्लासिकी रूप में किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर किसी भी कक्षा में हो सकता है । तब प्ररूपी परमाण्वीय साइज किससे निर्धारित होता है? परमाणु अपने प्ररूपी साइज की अपेक्षा दस हजार गुना बड़ा क्यों नहीं है? इस प्रश्न ने बोर को अपने प्रसिद्ध परमाणु मॉडल, जो आपने पाठ्यपुस्तक में पढ़ा है तक पहुंचने से पहले बहुत उलझन में डाला था। अपनी खोज से पूर्व उन्होनें क्या किया होगा, इसका अनूकरण करने के लिए हम मूल नियतांकों की प्रकृति के साथ निम्न गतिविधि करके देखें कि क्या हमें लंबाई की विमा वाली कोई राशि प्राप्त होती है, जिसका साइज, लगभग परमाणु के ज्ञात साइज `(~10^(-10)m`) के बराबर है।
(a) मूल नियतांकों `e,m_(e)` और `c` से लंबाई की विमा वाली राशि की रचना कीजिए। उसका संख्यात्मक मान भी निर्धारित कीजिए।
(b) आप पाएंगे कि (a) में प्राप्त लंबाई परमाण्वीय विमाओं के परिमाण की कोटि से काफी छोटी हैं इसके अतिरिक्त इसमें `c` सम्मिलित है। परंतु परमाणुओं की ऊर्जा अधिकतर अनापेक्षिपीय क्षेत्र में है जहां `c` की कोई अपेक्षित भूमिका नहीं है। इसी तर्क ने बोर को `c` का परित्याग करसही परमाण्वीय साइज को प्राप्त करने के लिए कुछ अन्य देखने के लिए प्रेरित किया। इस समय प्लांक नियतांक `h` का कहीं और पहले ही आविर्भाव हो चुका था। बोर की सूक्ष्मदृष्टि ने पहचाना कि `h,m_(e)` से ही लंबाई की विमा वाली किसी राशि की रचना कीजिए और पुष्टि कीजिए कि इसका संख्यात्मक मान, वास्तव में सही परिमाण की काटि का है।