Moral of the story bholaram ka jeev in hindi


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प्रस्तुत पाठ या व्यंग्य लेख  भोलाराम का जीव , लेखक हरिशंकर परसाई जी के द्वारा लिखित है ।वास्तव में देखा जाए तो ज्यादातर सरकारी अधिकारी रिश्वत लेने की फेहरिस्त में शामिल होते हैं । कभी-कभी लोग सरकारी दफ्तर का चक्कर लगाते-लगाते मृत्यु को प्राप्त भी हो जाते हैं, मगर उनका काम नहीं बनता । इन्हीं भ्रष्टाचार पर व्यंग्यात्मक बाण चलाते हुए लेखक ने यह कहानी लिखी है । यदि इस कहानी के दूसरे पक्ष की बात करें तो इसमें भोलाराम नामक व्यक्ति के लगातार पांच वर्षों तक पेंशन हेतु संघर्ष करने का मार्मिक चित्रण है । प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार किस प्रकार पनप रहा है, इसका व्यंग्य शैली में वर्णन किया गया है ।

प्रस्तुत व्यंग्य लेख के अनुसार, धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य लोगों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक भेजते आ रहे थे । पर सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर देख रहे थे । परन्तु, कोई गलती नजर नहीं आ रही थी । तभी वे धर्मराज को संबोधित करते हुए बोले – महाराज ! रिकॉर्ड सब ठीक है, भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर यहाँ अभी तक नहीं पहुँचा । इतने में धर्मराज ने कहा – और यह दूत कहाँ है ?  जवाब में चित्रगुप्त बोलते हैं – महाराज, वह भी लापता है । दोनों की बातें चल ही रही थी कि यमदूत अन्दर प्रवेश करता है, जिसे देखते ही चित्रगुप्त बोल उठे – अरे, तू कहाँ रहा इतने दिन ? भोलाराम का जीव कहाँ है ?  तभी जवाब में यमदूत हाथ जोड़ते हुए बोलता है – दयानिधान, आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया । भोलाराम की देह को त्यागते ही मैंने जीव को पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरंभ की । किन्तु वह जीव मेरे चंगुल से छूटकर न जाने कहाँ गायब हो गया । इन पाँच दिनों में मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर उस जीव का कहीं पता नहीं चला ।  यमदूत की बात सुनकर धर्मराज बहुत गुसा हुए और बोले – मूर्ख ! जीवों को लाते-लाते बूढ़ा हो गया, फिर भी एक मामूली बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया । यमदूत अपनी गलती पर बहुत शर्मिंदा हुआ । तभी चित्रगुप्त ने कहा – महाराज, आजकल पृथ्वी पर इस प्रकार का कारोबार बहुत चल रहा है । लोग दोस्तों को कुछ भेजते हैं और उसे रास्ते में ही रेलवे वाले उड़ा लेते हैं । राजनीतिक दलों के नेता विरोधी नेता को उड़ाकर बंद कर देते हैं । कहीं भोलाराम के जीव को भी किसी विरोधी ने मरने के बाद दुर्गति करने के लिए तो नहीं उड़ा दिया ?  इतने में धर्मराज ने चित्रगुप्त की ओर देखते हुए व्यंग्यात्मक ढंग से कहा – तुम्हारी भी रिटायर होने की उम्र आ गई, भला भोलाराम जैसे नगण्य, दीन आदमी से किसी को क्या लेना-देना ?